महिलाओं में जन्मजात नहीं होता है खाना पकाने का गुण

महिलाओं में जन्मजात नहीं होता है खाना पकाने का गुण

सेहतराग टीम

एक महिला को खाना बनाने के बारे में पता होना या खाने बनाने में आंनद इसलिए नहीं आता है क्योंकि वह एक महिला है। यह एक पसंद होनी चाहिए जो पुरूषों में भी होना चाहिए, अगर उन्हें खाना बनाना पसंद हो तो उन्हें भी खाने बनाने के बारे में पता होना चाहिए।

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'मुझे मेरी पीढ़ी की महिलाओं और जो पीढ़ियां बीत पीछे उनसे ज्यादा अधिकार मिले थे। मुझे कभी नहीं बोला गया कि पति के साथ रहने के लिए खाना बनाना होगा या खाना बनाना सीखना होगा है। मुझे केवल मां ने पाला है। इसलिए दूसरों को प्रभावित लिए किचन में जाने की जरूरत नहीं पड़ी। जैसे-जैसे मैं बड़ी हुई जीने के लिए खाना बनाना सीख लिया, छोटी-छोटी चीजें जैसे- रोटी, सब्जी, दाल, चावल और मैगी, इसके आलावा कभी-कभी ऑमलेट और इसके लिए मुझे करने की जरूरत नहीं पड़ी। मां खाना बनाती थी और वह कभी नहीं चाहती थी कि मेरी जैसा अनुशासनहीन व्यक्ति उनके किचन में जाए और वह कभी नहीं चाहती थीं कि मैं खाना बनाऊं या साफ-सफाई करूं। उनके लिए पहली प्राथमिकता मेरी शिक्षा और स्वतंत्रता थी।

मैंने महसूस किया कि मुझे खाना बनाना पसंद है।

मैंने सोचा नहीं था कि इस तरह पूरी जिंदगी अनुशासनहीन होने के बावजूद किचन में रहना पसंद करुगीं। जब तक मैं बैंगलोर नहीं गयी तब तक मुंबई में कुछ अच्छी डिसेस बनाती थी, लेकिन मां को ये बात हमेशा खटकती थी। यहां घर में अकेले रहने की वजह से गलतियां करने की छूट भी थी।

लगातार कई बार गलतियां करने की छूट से आपको आत्मविश्वास आता है। क्योंकि वहां आपको कोई टोकने वाला नहीं होता है और तय नहीं करता है कि आपको खाना बनाना नहीं आता है। आपके गोल रोटियां बनाने का दवाब नहीं होता है, आप दुसरे सैकड़ों लोगों के आंके बिना कोई भी गड़बड़ कर सकते हैं। आप अकेले हो लेकिन एक ऐसा साथी जरूर हो जो सोफे पर बैठने की बजाए आपके साथ किचन में मदद करे।

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यह पसंद हो न कि मजबूरी-

मैंने कभी नहीं सोचा था कि मैं कभी मटन या मछली बनाऊंगा, मैं यहां बहुत सारे मसाले और सरसों के तेल के साथ मटन कोशा और कढ़ी बना रहा हूं और टेन्डराइज़ और कोशानो को समझने की कोशिश कर रहा हूं। मैं अलग-अलग तरीके के मसालों, सामानों को मिलाकर कुछ न कुछ बनाने की कोशिश करता हूं। मैं आप्रासंगिक बातों से दूर रहता हूं। क्योंकि मेरा मानना है कि जब चीजें नेचुरल तरीके से होती हैं तो वे अच्छी लगती हैं। जब चीजें आजादी, पसंद और सहमति से होती हैं तो इसमें शामिल सभी पक्ष नई चीजों को करने के लिए खुश होते हैं। लेकिन अगर किसी का रुझान न हो तो यह केवल काम होता है जिसे हमें सिर्फ खत्म करना होता है। अक्सर कई महिलाएं अपने जीवन में असंतुष्ट रह जाती हैं क्योंकि उन्हें जितना समय रसोई में बिताना पड़ता है उतना ही हमें बात करनी चाहिए। भावनातमक और मातृत्व कर्त्वयों के नाम पर अनपेड लेबर और जबरन नौकरी कराते हैं। ऐसे बहुत से कारण हैं जो महिलाओं को ये विश्वास दिलाते हैं कि उन्हें खाना पकाने से प्यार है जबकि वास्तव में ऐसा नहीं होता है।

बेसिक खाना पकाना हर किसी को सीखना चाहिए और खुद का पेट भरने के हमें यह रोज करना चाहिए। एक ही व्यक्ति इसे करे रोकिए, अगर आप देखते हैं कि कोई अकेले खाना बना रहा है तो उसकी मदद करें।

(खबर एंव फोटो साभार- Womensweb.in)

 

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